बच्चों को लगाएं धूप, मधुमेह रहेगा दूर
बच्चों में विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा का क्या मधुमेह से कोई लेना देना है? अब तक तो ये माना जाता था कि विटामिन डी की कमी से शरीर की हड्डियां कमजोर होती हैं क्योंकि विटामिन डी न हो तो शरीर में कैल्सियम पर्याप्त मात्रा में अवशोषित नहीं होता। मगर हाल में हुए एक नए शोध से संकेत मिले हैं कि अगर बच्चों को विटामिन डी की पर्याप्त खुराक मिले तो ऐसे बच्चों में टाइप 1 डायबिटिज का खतरा कम हो जाता है। यही नहीं इसके कारण शरीर में दवाओं के खिलाफ बन जाने वाली प्रतिरोधक क्षमता का जोखिम भी कम हो जाता है।
विटामिन डी इसलिए है महत्वपूर्ण
दरअसल, विटामिन डी टाइप 1 डायबिटिज के खिलाफ कैंडिडेट प्रोटेक्टिव फैक्टर का प्रतिनिधि होने के साथ-साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी नियमित करता है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में टाइप 1 डायबिटिज के मामले 3 से लेकर 5 फीसदी के दर से बढ रहे हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत की 80 फीसदी आबादी विटामिन डी की कमी से ग्रस्त है।
जाहिर है कि अगर विटामिन डी की मात्रा शरीर में कम हुई तो इसका असर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता पर पड़ता है। हम ये भी जानते हैं कि विटामिन डी के लिए हमें आमतौर पर कोई दवा खाने की जरूरत नहीं है, बस दिन में सुबह की थोड़ी देर की धूप खाली बदन को लगाने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के के अग्रवाल कहते हैं कि अब तक यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि बच्चों में टाइप 1 डायबिटिज होने की मुख्य वजह क्या है मगर अधिकांश लोगों में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता गलती से पैंक्रियाज में इंसुलीन बनाने वाली कोशिकाओं को भी नष्ट कर देती है।
इस प्रक्रिया में वंशानुगत और पर्यावरणीय कारक भी अपनी भूमिका निभाते हैं। शरीर में इंसुलीन बहुत महत्वपूर्ण कार्य करता है। वह है खून के जरिये कोशिकाओं तक ग्लूकोज पहुंचाना। जब इंसुलीन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं तो शरीर में बहुत कम या फिर बिल्कुल ही इंसुलीन का उत्पादन नहीं होता है। इसके कारण खून में ग्लूकोज जमा होने लगता है और धीरे-धीरे यह जान को खतरे में डालने वाली परिस्थियां पैदा कर देता है।
टाइप 1 डायबिटिज भले ही धीरे-धीरे जड़ जमाए मगर इसके लक्षण अचानक उभर सकते हैं। बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों में खास है ज्यादा पेशाब और प्यास लगना। इसके अलावा थकान, दिखने में परेशानी, खूब भूख लगना और तेज वेट लॉस इसके अन्य लक्षण हैं।
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं, इस बीमारी को खत्म करना संभव नहीं है मगर इसकी जटिलताओं को जरा सी सावधानी बरत कर दूर किया जा सकता है।
बच्चों की खान-पान की आदत सुधारकर, उन्हें नियमित रूप से शारीरिक खेल-कूद में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करके और सालाना आधार पर उनकी आंखों की जांच करवा कर ऐसा किया जा सकता है। निश्चित रूप से पूरी जिंदगी के लिए शरीर में ग्लूकोज को नियंत्रित करने के उपाय तो करने ही होंगे। इसलिए बच्चों के साथ-साथ यह मां-बाप के लिए कड़ी परीक्षा वाली स्थिति है।
Comments (0)
Facebook Comments (0)